अल्लामा इक़बाल की शायरी – Allama Iqbal 2 Line Islamic Shayari With Pdf – अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल

अल्लामा इक़बाल की शायरी- अल्लामा इक़बाल अविभाजित भारत के प्रसिद्ध कवि, नेता और दार्शनिक थे | मोहम्मद इक़बाल का जन्म ब्रिटिश भारत के समय पंजाब के सियालकोट में 9 नवम्बर 1877 को हुआ था। यह अपनी शायरी, गजल, और कविताओ से काफ़ी प्रसिद्ध थे, इसलिए इन्हे पाकिस्तान के राष्ट्रकवि माना जाता है |

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अल्लामा इकबाल इस्लामिक शायरी इन हिंदी


ताही ज़िंदगी से नहीं यह फिज़ाएँ
यहाँ सैंकड़ों कारवाँ और भी हैं


कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में


माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख


Allama Iqbal Shayari in Hindi Language


ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी


उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए


अनोखी वज़्अ’ है सारे ज़माने से निराले हैं ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं..!


देख कैसी क़यामत सी बरपा हुई है आशियानों पर इक़बाल
जो लहू से तामीर हुए थे, पानी से बह गए…!


Allama Iqbal Shayari Hindi Font


यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें..!


सितारों से आगे जहां और भी हैं अभी इश्क के इम्तिहां और भी हैं…!


दुश्मन की गोलियों का सामना करेंगे आजाद ही रहे हैं, आजाद रहेंगे….!


मेरा नाम आजाद मेरे पिता का नाम स्वाधीनता और मेरा घर जेल है…!


अल्लामा इक़बाल की शायरी इन उर्दू



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तस्कीन न हो जिस से वो राज़ बदल डालो
जो राज़ न रख पाए हमराज़ बदल डालो…!

तुम ने भी सुनी होगी बड़ी आम कहावत है
अंजाम का जो हो खतरा आग़ाज़ बदल डालो…!

पुर-सोज़ दिलों को जो मुस्कान न दे पाए
सुर ही न मिले जिस में वो साज़ बदल डालो…!

दुश्मन के इरादों को है ज़ाहिर अगर करना
तुम खेल वही खेलो अंदाज़ बदल डालो..!

ऐ दोस्त करो हिम्मत कुछ दूर सवेरा है
अगर चाहते हो मंज़िल तो परवाज़ बदल डालो….!


दिल की बस्ती अजीब बस्ती है लूटने वाले को तरसती है। मुमकिन है कि तू जिसको समझता है बहारां औरों की निगाहों में वो मौसम हो खिजां का…!


Allama Iqbal 2 Line Shayari


अमल से ज़िन्दगी बनती है , जन्नत भी जहनुम भी
यह कहा की अपनी फितरत में न नूरी है न नारी है..!


ऐ आसमान तेरे ख़ुदा का नहीं है ख़ौफ़ डरते हैं ऐ ज़मीन तिरे आदमी से हम..!


पानी पानी कर गयी मुझको कलंदर की वो बात
तू झुका जो ग़ैर के आगे न तन तेरा न मन तेरा…!


साकी की मुहब्बत में दिल साफ हुआ इतना जब सर को झुकाता हूं शीशा नजर आता है…!


अल्लामा इक़बाल शिकवा इन हिंदी पीडीएफ


तेरी दुआ से कज़ा* तो बदल नहीं सकती मगर है इस से यह मुमकिन की तू बदल जाये तेरी दुआ है की हो तेरी आरज़ू पूरी मेरी दुआ है तेरी आरज़ू बदल जाये…!


दूसरों को अपने आप से आगे बढ़ते हुए न देखो। हर दिन अपने आप के कीर्तिमान को तोड़ो, क्योकि सफलता आपकी अपनी खुद की लड़ाई है…!


इक़रार -ऐ-मुहब्बत ऐहदे-ऐ.वफ़ा सब झूठी सच्ची बातें हैं “इक़बाल”
हर शख्स खुदी की मस्ती में बस अपने खातिर जीता है…!


सख्तियां करता हूं दिल पर गैर से गाफिल* हूं मैं हाय क्या अच्छी कही जालिम हूं, जाहिल हूं मैं…!


Allama Iqbal Shayari on Karbala


कभी ऐ हक़ीक़त-ए-मुंतज़र नज़र आ लिबास-ए-मजाज़ में
कि हज़ारों सज्दे तड़प रहे हैं मिरी जबीन-ए-नियाज़ में…!


इश्क़ क़ातिल से भी मक़तूल से हमदर्दी भी,
यह बता किस से मुहब्बत की जज़ा मांगेगा,
सजदा ख़ालिक़ को भी इबलीस से याराना भी,
हसर में किस से अक़ीदत का सिला मांगेगा..!


बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर जिस खेत से दहक़ाँ को मयस्सर नहीं रोज़ी उस खेत के हर ख़ोशा-ए-गंदुम को जला दो…!


सौदागरी नहीं यह इबादत खुदा की है
ऐ बेखबर जज़ा की तमन्ना भी छोड़ दे…!


अल्लामा इक़बाल ग़ज़ल


अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़-ए-ज़ि़ंदगी
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन…!


गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर चराग़-ए-राह है मंज़िल नहीं है…!


कभी छोड़ी हुई मंज़िल भी याद आती है राही को
खटक सी है जो सीने में ग़म-ए-मंज़िल न बन जाए..!


तुझे किताब से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तू किताब-ख़्वाँ है मगर साहिब-ए-किताब नहीं…!


ख़ुदी वो बहर है जिस का कोई किनारा नहीं
तू आबजू इसे समझा अगर तो चारा नहीं…!


Allama Iqbal Shayari On Imam Hussain


किसी की याद ने ज़ख्मो से भर दिया सीना
हर एक सांस पर शक है के आखरी होगी…!


ज़माम-ए-कार अगर मज़दूर के हाथों में हो फिर क्या तरीक़-ए-कोहकन में भी वही हीले हैं परवेज़ी…!


और भी कर देता है दर्द में इज़ाफ़ा
तेरे होते हुए गैरों का दिलासा देना…!


कभी हम से कभी ग़ैरों से शनासाई है
बात कहने की नहीं तू भी तो हरजाई है…!


Allama Iqbal Sare Jaha Se Accha



सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा..!


बड़े इसरार पोशीदा हैं इस तनहा पसंदी में,
यह मत समझो के दीवाने जहनदीदा नहीं होते ,
ताजुब क्या अगर इक़बाल दुनिया तुझ से नाखुश है,
बहुत से लोग दुनिया में पसंददीदा नहीं होते…!


अल्लामा इकबाल इस्लामिक शायरी


ऋषी के फ़ाक़ों से टूटा न बरहमन का तिलिस्म
असा न हो तो कलीमी है कार-ए-बे-बुनियाद…!


जफा* जो इश्क में होती है वह जफा ही नहीं, सितम न हो तो मुहब्बत में कुछ मजा ही नहीं..!


तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ
मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ , सज़ा चाहता हूँ..!


ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
जिस रिज़्क़ से आती हो परवाज़ में कोताही…!


Allama Iqbal Ki Shayari in Urdu Language


उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में
नज़र आती है उन को अपनी मंज़िल आसमानों में…!


आज फिर तेरी याद मुश्किल बना देगी
सोने से काबिल ही मुझे रुला देगी
आँख लग गई भले से तो डर है
कोई आवाज़ फिर मुझे जगा देगी…!


ढूंढ़ता फिरता हूँ
ऐ इक़बाल अपने आप को
आप ही गोया मुसाफिर आप ही मंज़िल हूँ मैं..!


आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं
महव-ए-हैरत हूँ कि दुनिया क्या से क्या हो जाएगी…!


Allama Iqbal Shayari Hindi Font


किसी की याद ने
जख्मों से भर दिया है सीना
अब हर एक सांस पर शक है के आखरी होगी….!


ज़माम-ए-कार अगर मज़दूर के हाथों में हो फिर क्या
तरीक़-ए-कोहकन में भी वही हीले हैं परवेज़ी…!


फूल चाहे थे
मगर हाथ में आए पत्थर ,
हम ने आगोश-ऐ-मोहब्बत में सुलाये पत्थर…!


Famous Shayari of Allama Iqbal


उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए…!


अज़ाब-ए-दानिश-ए-हाज़िर से बा-ख़बर हूँ मैं
कि मैं इस आग में डाला गया हूँ मिस्ल-ए-ख़लील…!


उठा कर चूम ली हैं
चंद मुरझाई हुई कलियाँ ,
न तुम ए तो यूं जश्न-ऐ-बहाराँ कर लिया मैन….!


बाग़-ए-बहिश्त से मुझे हुक्म-ए-सफ़र दिया था क्यूँ
कार-ए-जहाँ दराज़ है अब मिरा इंतिज़ार कर…!


खुदा तो मिलता है , इंसान ही नहीं मिलता ,
यह चीज़ वो है जो देखी कहीं कहीं मैंन…!


Allama Aqbal Top Sher in Hindi


उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा…!


जिन के आँगन में
अमीरी का शजर लगता है ,
उन का हर ऐब भी ज़माने को हुनर लगता है…!


बातिल से दबने वाले ऐ आसमाँ नहीं हम
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहाँ हमारा…!


तेरी बन्दा परवारी से मेरे दिन गुज़र रहे हैं
न गिला है दोस्तों का ,
न शिकायत-ऐ-ज़माना…!


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